दिन में गेस्ट फैकल्टी, रात में कुली
ओडिशा के गंजम जिले के नागेशु पात्रो दिन में एक प्राइवेट कॉलेज में गेस्ट लेक्चरर के तौर पर काम करते हैं और रात में बेरहमपुर रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करते हैं। ऐसा वह ज्यादा पैसा कमाने के लिए नहीं, बल्कि गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए करते हैं।
31 साल के नागेशु ने गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने के लिए एक कोचिंग सेंटर खोला है। कुली का काम करके वे जो पैसे कमाते हैं, उससे इस कोचिंग सेंटर के टीचर्स को सैलरी देते हैं। दिन की शुरुआत में वे गेस्ट फैकल्टी के तौर पर प्राइवेट कॉलेज अटेंड करते हैं, इसके बाद अपने कोचिंग सेंटर पर क्लासेस देते हैं। रात को वे रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करते हैं।
कोरोना के दौरान शुरू किया बच्चों को पढ़ाना
पात्रो ने कहा कि कोरोना महामारी के दौरान अपने घर पर खाली बैठने के बजाय उन्होंने गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाना शुरू किया। जैसे-जैसे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी, उन्होंने क्लास 8 से 12 के बच्चों के लिए कोचिंग सेंटर खोला। यहां पर बच्चों को हिन्दी और उड़िया वे खुद पढ़ाते हैं।
कॉलेज से 8 हजार, कुली के काम से कमाते हैं 12 हजार
कुली का काम करके वे महीने में 10 हजार से 12 हजार रुपए कमाते हैं, जिसमें से वे कोचिंग सेंटर के 4 टीचर्स को 3 से 4 हजार रुपए देते हैं। कॉलेज से मिलने वाले 8 हजार रुपए से वह अपने परिवार का खर्च उठाते हैं। उनके परिवार में माता और पिता हैं, जिनके साथ वे गंजम जिले के मनोहर गांव में रहते हैं।
गरीबी के चलते हाईस्कूल की परीक्षा नहीं पाए थे नागेशु
पात्रो खुद गरीब परिवार से आते हैं। 2006 में वे हाईस्कूल के एग्जाम नहीं दे पाए थे। उनके पिता गड़रिए का काम करते थे और उनका गुजारा मुश्किल से हो पाता था। ऐसे में उनके लिए अच्छी पढ़ाई करना दूर का सपना था। तब से ही वे बच्चों को शिक्षा देने के मिशन पर निकल पड़े हैं।
कॉलेज टीचर रहते हुए कुली का काम करने को लेकर पात्रो कहते हैं कि लोग जो सोचते हैं उन्हें सोचने दें, मुझे बच्चों को पढ़ाना पसंद है और मैं गरीब बच्चों की पढ़ाई जारी रखना चाहता हूं। मैं नहीं चाहता कि गरीब परिवारों के बच्चों को पैसों की कमी के चलते अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़े।
2011 से कर रहे हैं कुली का काम
पात्रो ने 2011 में खुद को रेलवे स्टेशन पर कुली के तौर पर रजिस्टर किया था। इसके बाद उन्होंने 2012 में कॉरेस्पॉन्डेंस कोर्स के जरिए 12वीं की परीक्षा दी। 12वीं पास करने के बाद उन्होंने बेरहमपुर यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन किया।
उन्होंने कुली रहते हुए अपनी सारी पढ़ाई का खर्च उठाया। उन्होंने कहा कि अब लोग ट्रॉली बैग और एस्केलेटर का इस्तेमाल करने लगे हैं, जिससे कुली के तौर पर उनकी कमाई कम हो गई है। उन्होंने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से अपील की है कि कुलियों के लिए कोई कदम उठाएं।
कॉलेज से 8 हजार, कुली के काम से कमाते हैं 12 हजार
कुली का काम करके वे महीने में 10 हजार से 12 हजार रुपए कमाते हैं, जिसमें से वे कोचिंग सेंटर के 4 टीचर्स को 3 से 4 हजार रुपए देते हैं। कॉलेज से मिलने वाले 8 हजार रुपए से वह अपने परिवार का खर्च उठाते हैं। उनके परिवार में माता और पिता हैं, जिनके साथ वे गंजम जिले के मनोहर गांव में रहते हैं।
गरीबी के चलते हाईस्कूल की परीक्षा नहीं पाए थे नागेशु
पात्रो खुद गरीब परिवार से आते हैं। 2006 में वे हाईस्कूल के एग्जाम नहीं दे पाए थे। उनके पिता गड़रिए का काम करते थे और उनका गुजारा मुश्किल से हो पाता था। ऐसे में उनके लिए अच्छी पढ़ाई करना दूर का सपना था। तब से ही वे बच्चों को शिक्षा देने के मिशन पर निकल पड़े हैं।
कॉलेज टीचर रहते हुए कुली का काम करने को लेकर पात्रो कहते हैं कि लोग जो सोचते हैं उन्हें सोचने दें, मुझे बच्चों को पढ़ाना पसंद है और मैं गरीब बच्चों की पढ़ाई जारी रखना चाहता हूं। मैं नहीं चाहता कि गरीब परिवारों के बच्चों को पैसों की कमी के चलते अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़े।
2011 से कर रहे हैं कुली का काम
पात्रो ने 2011 में खुद को रेलवे स्टेशन पर कुली के तौर पर रजिस्टर किया था। इसके बाद उन्होंने 2012 में कॉरेस्पॉन्डेंस कोर्स के जरिए 12वीं की परीक्षा दी। 12वीं पास करने के बाद उन्होंने बेरहमपुर यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन और पोस्ट ग्रैजुएशन किया।
उन्होंने कुली रहते हुए अपनी सारी पढ़ाई का खर्च उठाया। उन्होंने कहा कि अब लोग ट्रॉली बैग और एस्केलेटर का इस्तेमाल करने लगे हैं, जिससे कुली के तौर पर उनकी कमाई कम हो गई है। उन्होंने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से अपील की है कि कुलियों के लिए कोई कदम उठाएं।
